Wednesday, January 4, 2017

|| भाव सुमन -०४- राम जी अनोखे सौदागर ||

|| जय माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी ||
|| भगवान श्री सीता राम जी के रूप में चरणों में अर्पित ||






हे करूणानिधि प्रभु ! मेरा तो कुछ भी नहीं है सब आपका ही है अतः ऐसा लगता है आप अपना सब कुछ वापस ले रहें हैं. वो तो ठीक है स्वामी , पर सब कुछ में मैं भी आता हूँ, मुझे लेना न भूलना !

हे नाथ ! थोडा गौर से देखूं तो आप जो थोडा बहुत ले लेते हो , बदले में अनंत गुना कर वापस दे देते हो.मेरा स्थूल प्रेम छूटा तो आपके श्री चरणों में प्रेम व् माँ की ममता और प्रीती प्राप्त हुई. समस्त जग के प्रति प्रेम की भावना होने लगी है. 

हे प्रभु ! नौकरी, डॉलर व् तनख्वा गयी तो राम नाम रूपी अमूल्य निधि प्राप्त हुई.

हे भगवन ! आप पिता रूप से मुझे छोड़ गए तो परम पिता के रूप में मेरे हृदय में आ विराजे हैं. 

हे मेरे सर्वस्व , मेरे प्राण ! अब छण भर ऐसा प्रतीत होता है की ८० x १५ का धरती मेरी नहीं है तो अनंत ब्रहमांड से एकता का छणिक अनुभव होता है. 
इसलिए हे दीननाथ ! आपका तो लेना भी दीनो को निहाल मालामाल कर देता है.

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