|| जय माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी ||
|| भगवान श्री सीता राम जी के रूप में चरणों में अर्पित ||
कौन हो प्रभु तुम, और ये क्या सम्बन्ध है.
झुकी झुकी हैं नज़रे , और ये जुबां बंद है .
क्योँ थर थराए वाणी , क्योँ ये आँखे नम हैं.
क्योँ दिल भर भर आता, क्योँ कुछ नहीं सुहाता.
इतनी करता हूँ बातें, ये जो तुम सामने नहीं हो.
गर तुम नज़र आते, मुझे सबसे पीछे पाते.
बोलना तो दूर, नज़रें न मिला पाता.
न कोई गिला हे तुमसे, नो कोई शिकवा है.
तुम हो स्वाति बूँद प्रभु, ये दास चकवा है.
तुम कितने जहां के मालिक, और मैं कुछ भी नहीं हूँ.
मेरी शुरुआत हे तुमसे, तुममे ही समाना है.
कहाँ से आया हूँ, और कहाँ जाना है.
चाहे ले लेना ये प्राण, पर मुझसे अपना नाम न लेना.
प्राण बिना में जी जाऊँगा, पर नाम बिना में मर जाऊँगा.
No comments:
Post a Comment