Spiritual Energy Centre of your city – for well being of everyone !
अपने शहर में एक ध्यान-जप उर्जा केंद्र स्थापित करें। इस कक्ष में आने वाले लोग सर्वजनहिताय-परजनहिताय तथा सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना से जप करेंगे। इस कार्य का यही एक सार्वभौमिक उद्देश्य होना चाहियें – “आपके नगर में दिव्य शान्ति, खुशहाली, जनमानस में पवित्र सद्गुणों का विकास, सर्व-धर्मानुयायियों में सहिष्णुता, लोगो का अच्छा स्वास्थ्य तथा आर्थिक स्वलम्बता, दैविक प्रकोपों से रक्षा, गौ-गौरी-गंगा की रक्षा।”याद रखें कि आपके क्षेत्र में शांति व दिव्यता आपके जीवन में भी शांति तथा दिव्यता ले कर आयेगी।
जिनके पास भी सुविधा हो, ground floor पर अतिरिक्त कमरा हो। वे अपने क्षेत्र में एक ध्यान तथा जप कक्ष बनायें। छोटे शहर में १-२ ध्यान तथा जप कक्ष बना सकतें हैं। बड़े शहर में ज्यादा भी हो सकते हैं।
ऐसे लोगो का ध्यान रखें जिनकी जप व ध्यान के साथ परजनहिताय-परजनसुखाय में रूचि हो । उनको आप whatsapp, facebook,phone call या व्यक्तिगत तौर पर मिलकर आमंत्रित करें । उन्हें उद्देश्य समझाएं तथा यहाँ दिये गए सामान्य-साधारण नियमों की flexi भी बनाकर कक्ष में टांग सकतें हैं।
जहाँ लोग एक विशेष समय पर (या कभी भी आकर) मानसिक जाप कर सकतें हों। 15 मिनट जप रोज कर सकतें हैं या जिस दिन नगर में या job में साप्ताहिक अवकाश हो , उस दिन १ घंटे जप साप्ताहिक भी रख सकतें हैं।यह आप आपसी सहमिति से निर्धारित कर लें। सुबह का 6-७ बजे तथा रात्रि का 9 के बाद का समय ठीक रहता है। कोई आग्रह न हो, सुविधानुसार सहभागी १,२,१० या कितनी भी माला कर सकतें हैं।
कोई भी कीमती चीज़े वहां न रखें। बस एक खाली कमरा जमीन पर बैठने की सुविधा के साथ। जो नीचे न बैठ सकें उनके लिए २-३ कुर्सी रख दें।
कोई बाध्यता नहीं हो, आप अपने मत-परम्परा के अनुसार श्री गुरु मन्त्र, माँ गायत्री, श्री राम, श्री शिव जी के कोई भी मन्त्र कितनी भी देर जाप कर सकतें हैं। बस शर्त यह हो कि बिलकुल मानसिक जप हो। (No talk at all)
आप केवल अपनी जप माला साथ लायें, आसन व बैठने की व्यवस्था रहेगी। हो सके तो गौ-मुखी लायें परन्तु ऐसा विशेष आग्रह भी न हो।
इस अनुष्ठान की सुविधा की दृष्टि से कोई बाह्य आचार या विधि इत्यादि की आवश्यकता नहीं होगी। कोई प्रसाद आदि ले कर न आयें। मौन में आयें – मौन में जाएँ।
सावधानी ताकि यह अनुष्ठान सफल हो सकें –
इस कार्य को कोई भी नाम न दें, सामान्य तौर पर परजनहिताय-परजनसुखाय ध्यान व जप कह सकते हैं । कोई भी नाम देने से उसका एक वर्गीकरण हो जाता है और लोग खुल कर नहीं जुड़ पातें। पढ़े लेख – एक निराकार सेवा – an anonymous service !
ध्यान व जप कक्ष बनाने में होड़ न रखें। यह न सोचे कि कितने लोग आयेंगे या किसी और के यहाँ ज्यादा लोग आ रहें हैं। अगर आप अकेले भी हैं तो भी ठीक है विशुद्ध अध्यात्मिक भाव से इस अनुष्ठान को प्रारम्भ करें, लोग अपने आप जुड़ते जायेंगे।
ध्यान रखें कोई हो-हल्ला-नारेबाजी न हो, दिखावा न हो, print-online media में भी criticism से बचें क्योंकि यह कार्य एक उच्चतर उद्देश्य से किया जा रहा है और इसमें कोई खर्चा नहीं है, कोई बहुत व्यवस्था नहीं है, कोई जटिलता नहीं है। इसकी साधारणता ही इसकी विशेषता हो।
No comments:
Post a Comment