Monday, January 15, 2018

माँ की रसोई


जय गुरुदेव जय माँ ललिता त्रिपुरसुन्दरी !






माँ की रसोई !
माँ जो इस सारे संसार को अन्न व् जल से तृप्त कर रही हैं.

कीट पतंगों से ले कर हम मनुष्यों सहित अनंत कोटि ब्रह्मांडो में विभिन्न संतानों को निरंतर पोषित करने वाली माँ एक ही हैं.

सबकी भूख एक सी ही  होती है,  उस भूख को माँ ही  शान्त कर सकती हैं. और कोई नहीं.

माँ मनुष्यों , बंदरो , किटो, मछलियों, सिंहो में भेद नहीं करती हैं.
माँ खाना खिलाते समय धर्मं, जाति, वर्ण व्  रूप इत्यादि का भेद नहीं करती हैं.  वरन स्नेह से सबका पोषण करतीं हैं.

बालक केवल भोजन से ही पुष्ट नहीं होता , वरन माँ का स्नेह ही बच्चे को पुष्ट करता हैं तभी तो गाय के घी को स्नेह भी कहा जाता हैं.

अतः माँ की रसोई  अपने बच्चो को स्नेह से भोजन कराने का  माँ का कार्य करेगी. माँ की रसोई कोई संस्था का नाम नहीं हैं वरन एक भाव है.  माँ की रसोई एक अनाम, अरूप  संस्था की भातीं ही काम करेगी.


छोटे छोटी रसोई से शुरूआत करी जाएगी. आगे माँ जैसे करे .....


      नीम करोली बाबा एक  ही उपदेश दिया करते थे.  राम नाम जपो व् भूखे को भोजन कराओ.  बस, इतना ही. इससे हो जायेगा.  बाबा के आश्रम में जो भी आता प्रसाद अवश्य पाता था , आज भी स्थापना दिवस पर मीठे पूरी का वितरण किया जाता हैं.


      साईं बाबा कहते थे , भूखे को भोजन कराओ, सबकी भूख एक सी ही होती है चाहें वो मनुष्य की हो या जानवर की, चाहें वो धनी की हो या गरीब की. चाहें पापी की हो या पुण्यात्मा की. साईं बाबा के यहाँ भी भोजन प्रसाद बना करता था जो की वो स्वयं ही बनाते थे.


अतः हो सके तो सबके निमित्त भोजन प्रसाद रखना चाहियें , गृहस्थ को भी रोज या हर हफ्ते किसी न किसी को भोजन अवश्य करवाना चाहियें. 


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