Saturday, February 18, 2017

|| भाव सुमन -०० - क्रंदन करता बालक और माँ ||


आज माँ  की महिमा के बारे में श्री अभिनव गुप्त जी का अद्भुत ग्रन्थ " Abhinav Gupt : A Trident of Wisdom " पढ़ रहा था। पढ़ते पढ़ते रोमांच व आनंद के भाव में यह अनुभूति हुई , कि जिस प्रकार एक बालक बैचेन हो जाने पर किसी भी चीज़ से संतुष्ट नहीं होता है, तब उसे केवल और केवल माँ चाहिये होती है, और माँ की उपस्थिति  का अनुभव होते ही वो चुप हो जाता है, फिर उसे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं होती, वो प्रसन्नचित होकर आनंदमय हो जाता है, भला ऐसा क्योँ न हो हमारी माँ आनंदमयी जो हैं।  ऐसी ही कुछ अवस्था होने पर जब कभी मन अत्यंत खिन्न और बैचेन हो जाता है तो सिर्फ माँ की चिंतन , माँ की महिमा का स्मरण और सब जगह, अपने अंतःकरण में माँ की अनुभूति ही शांत कर पाती है और कुछ नहीं । ऐसी अनुभूति श्री अभिनव गुप्त जी का अद्भुत ग्रन्थ पढ़ कर हो रही है। 

अतः हम यदि सदैव अपने को माँ से जोड़े रखेंगे, अलग न होने देंगे। तो कभी भी छोभ, विषाद स्पर्श नहीं कर पायेंगे।और यहाँ तो माँ ने कभी हमें छोड़ा ही नहीं है वो माँ तो ह्रदयस्थ हैं वरन हम ही माँ को भूल जाते हैं अतः हर समय माँ के चरण कमलों को स्मरण  द्वारा स्पर्श करते रहना चाहियें। 

Thursday, February 9, 2017

|| भाव सुमन -०० - मातृ भाव से उपासना ||

जगत जननी माँ अम्बा 
मातृ भाव की उपासना
श्री रामचरित मानस जी से 

जय गज बदन षडानन माता । 
जगत जननि दामिनि दुति गाता  

हे ! श्री गणेश जी और श्री कार्तिकेय जी की माता की जय हो। वो जो सारे जगत की जननी हैं और जिनकी देह की कान्ति चमकती हुई विघुत के समान हैं, वो माँ हम पर कृपा करें

वो माँ हमें भी शिशु के रूप में स्वीकार कर अपनी ममता और करूणा की छावं में ले लें। 

एकान्त में ध्यान में बैठें और माँ की ऊपर दी गयी मातृ स्वरूप छवि का मन ही मन चिंतन करते हुए स्वयं को छोटे शिशु के रूप में माँ के सम्मुख जाने। आर्त भाव को धारण करते हुए "माँ माँ ओ माँ ओ माँ उमा उमा" कहते हुए पुकारे।  उपर दी गयी चौपाई को खुलकर भावपूर्वक गायें स्वर,धुन आदि की चिंता न करें ,बालक को माँ को पुकारने में कैसी शर्त, कैसा नियम !  

Monday, February 6, 2017

|| भाव सुमन -०० - माँ से वार्तालाप ||


हे माँ । यह जो में विगत ३-४ वर्षो से अध्यात्मिक ज्ञान पढ़-सुन रहा हूँ। यह सब तेरी ही कृपा हो सकती है वरना यह सब पढ़ना-सुनना आश्चर्य लगता है। सामान्यतः बुद्धि इन बातों को पकडती ही नहीं हैं । ऐसे में यह बुद्धि जो इन बातों को पकडती है वो सिर्फ तेरी अनुकम्पा के बिना नहीं हो सकता है। बस माँ अब तेरे आशीर्वाद से जो पढ़ा-सुना है वो अन्दर घटने भी लग जाये। 

एक तरफ लगता है तूने मेरा सब कुछ ले लिया है परन्तु दूसरी तरफ दीखता है कि तू तो बहुत कुछ देने की तैयारी में है। 

हे अम्बे । अब जो भी हो मुझे अपने चरण कमलों में पूर्ण समर्पण प्रदान कर चरण-शरण में ले लो। मुझे श्रद्धा और विश्वास प्रदान करो ,माँ । अब अन्दर से समझ में आता है माँ कि क्योँ स्वामी विवेकानंद ने माँ काली से श्रद्धा, विश्वास, जानने और मानने के अलावा कुछ नहीं माँगा था। 

माँ । मैं तो वो बालक हूँ जो पुस्तके पढ़ पढ़ कर बोलना सिखा है। जैसे अ से अनार । तेरे प्रयोगात्मक ज्ञान का अनुभव तो तेरी कृपा से ही होगा, न माँ । 

हे त्रिपुरा सुंदरी मैया । तूने ही तो त्रिपुरा रहस्य में कहा है कि जो भी गंभीरता तथा ईमानदारी से प्रयास करेगा तू अपनी कृपा द्वारा उसके आलस्य,सुस्ती को स्वयं दूर कर देगी । अतः मैया में अब हर समय तेरे ही चिंतन का अभ्यास करूंगा ताकि कभी भी तेरा विस्मरण न हो। ऐसा मुझको आशीर्वाद दे। 

माँ । तू तो नित्य है, सर्व शक्तिमयी है, सर्वज्ञ है, सर्वत्र है, सर्व नाम - रूप स्वरूप है, सर्व मंत्रमयी तथा सर्व शब्दमयी है, हमारा आत्मस्वरूप भी तो तू ही है ना माँ। अतः माँ । मैं जो भी हिलता-डुलता हूँ , जो भी बोलता-चालता हूँ, जिससे भी व्यवहार करता हूँ ; उस सबको तू अपनी ही आराधना मानकर स्वीकार कर लेना माँ। इससे मैं एक पल के लिए भी तुझसे रहित न होऊंगा। जब सोता हूँ तो तेरे चरणकमलों पर ही सिर रख कर सोता हूँ। जब खाता हूँ तो कभी तो तू मुझे अपने कर कमलों से खिलाती है और कभी मैं तुझे वैशवानर अग्नि में भोग लगाता हूँ । माँ क्यूंकि यह देह भी मेरी नहीं हैं यह तो तेरा एक औज़ार, एक अस्त्र है। तो इसका मतलब है हर दैनिक क्रिया में तू ही मुझे पालती-पोसती है। 

माँ हर वो परिस्थिति तथा व्यक्ति जिसके कारण मैंने अपने को दुखी माना हो या व्यतिथ हुआ हूँ ; वस्तुतः मेरा परम हितैषी ही है। उसने मुझे तेरे और करीब ला दिया है ,माँ।

Sunday, February 5, 2017

|| भाव सरिता - मौन हो जाने दो मुझे ताकि कुछ बात तो मैं कर सकूँ ||



मौन हो जाने दो मुझे ताकि कुछ बात तो मैं कर सकूँ, 
गहराईयों में कुछ यूँ खो जाने दो कि रास्तें मैं पा सकूँ,

झुकने दो इस कदर मुझे कि सिर मैं उठा सकूँ. 


मौन हो जाने दो मुझे दो बात करने के लिये, 
सब कुछ लुटाने दो मुझे उस दौलत को पाने के लिये, 
अस्तित्व मिटाने दो मुझे अपनी हस्ती दिखाने के लिये.

मौन हो जाने दो मुझे दो बात करने के लिये, 
कुछ यूँ भूला दूँ खुद को में सब कुछ याद आने के लिये,
कुछ यूँ सुला दूँ अरमानो को इन जमानो को जगाने के लियें, 

मौन हो जाने दो मुझे ताकि कुछ बात तो मैं कर सकूँ, 
कुछ ऐसा फिजा में बिखेर दूँ में , फिर हम एक हों जाएँ 
मिटा कर गिले शिकवे, फिर से हम नेक हो जाएँ. 

मौन हो जाने दो मुझे ताकि कुछ बात तो मैं कर सकूँ, 
एक राह यूँ सजा दूँ में, कि बेकरार सब हों जायें. 
जो आयें खीचें चले , पार सब वो हों जायें,

|| भाव सुमन -०० - माँ से आर्त प्रार्थना ||



हे अम्बिका त्रिपुरा सुन्दरी माता ! 


मुझमे इतना बल और शक्ति नहीं है की मैं तेरी गोद में स्वयं ही चढ़ आऊँ मां. माँ ये तो बता कब से बालक को माँ की गोद में आने के लिए शक्ति और बल चाहियेंने लगा. माँ ! कब से बालक को माँ के आँचल में छिपने के लिए पवित्रता के प्रमाण आवश्यकता लगने लगी. हर कोई यही बताता है मां , साधना करनी होगी , पवित्रता चाहियें. माँ मेरी साधना तो यह करुण व आर्त क्रन्दन ही है मेरी स्वछता तो इन अश्रु जल से भीगना ही है माँ. 

माँ मैं तो सोचता था माँ का आँचल तो निर्बल व् मल से सने बच्चो को भी प्यार व् ममता से सम्भालने के लिए होता है. बल तो बालक को माँ की गोद प्रदान करतीं है, बालक को स्वच्छ तो माँ स्वयं ही करती है. 

हे अम्बिके, हे त्रिपुरा सुन्दरी मैया ! कब तू इस बालक की आर्त पुकार सुन दौड़ी चली आएगी मां, कब तक यो ही निष्ठुर होने का नाटक करेगी मां, क्योँ माँ, तेरे को और कोई खेल नहीं सुझा अपने बालक से खेलने के लिए, मुझसे अलग होने के अलावा. 

माँ तू सब के अंदर माता रूप से विद्यमान है, पर माँ मुझे तेरे दर्शन क्योँ नहीं होते, क्या मेरी अपवित्रता तेरी ममता व् करूणा से बड़ी हो गयी है मां ? क्या मैं तेरा शाश्वत पुत्र नहीं हूँ मां ? या तू भी मुझे स्थूल रूप में शिशु, युवक , व्यस्क ही देखती हैं मां, क्या तू भी मुझे मेरे कर्म, गुण व् चेष्टाओं, पाप, पुण्य से तोलती है माँ ?

देख माँ , तू कितने ही रूप में क्योँ न प्रकट हुई हो मां, पर में तो तेरा एक ही रूप जानता हूँ और वो है मेरी माँ का. मुझे तेरे अलावा कोई ठोर नहीं है माँ, माँ जब तक तू मुझे गोद में लेकर परम पिता के हाथ में न देगी , तब तक ये बालक माता पिता के प्रेम से वंचित ही रहेगा माँ. 

माँ मैं जो हूँ वो मैं हूँ नहीं, और जो मैं होना चाहता हूँ वह मैं हूँ ही. 

माँ मुझे बहुत तरह से प्रार्थना करनी भी नहीं आती, मन में जो आया वो कह दिया, माँ. और मैंने क्या कहा माँ , यह भी तूने ही कहलवाया है.

|| भाव सुमन -०० - माँ के चरणों ओर ||



माँ ! वो माँ जो कभी भी जुदा नहीं होती । मैं उस माँ का अनुसरण कर रहा हूँ , जैसे एक छोटा बालक घुटनों के बल माँ के पीछे पीछे चलता है, पहले पहले तो माँ काम पर ध्यान देती है फिर जब देखती है यह तो मान ही नहीं रहा है तो माँ गोद में ले लेती है। ऐसे पवित्र भाव के साथ माँ के चरण कमलों का अनुसरण करते रहों । कोशिश करों की माँ से लाभ हानि से परे का नाता जोड़ो। श्री वामाखेपा जो माँ के तारा रूप की भक्ति करते थे वो अपनी माँ को छोटी माँ तथा माँ तारा को बड़ी माँ कहते थे। ऐसा पवित्र भाव तथा सम्बन्ध होंना चाहियें। 

कलयुग में मन, ह्रदय, अन्न आदि की शुद्धि नहीं हैं । अतः माँ के चरण कमलों की छवि रखो, पूजो, ह्रदय में बसाओ, ध्यान करों। जब छोटा बच्चा घुटनों के बल चलता है तो उसकी दृष्टि माँ के चरणों पर होती है। अतः अपने आप को शिशु की भांति माँ के चरण कमलो पर रख दो, माँ अपने आप तुम्हे गोद में उठा लेंगी।

माँ के चरणों की उपासना रामचरितमानस जी की निम्न चौपाईयों से भाव पूर्वक गाते हुए करें 


देबि पूजि पद कमल तुम्हारे ।  सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।