Friday, September 3, 2021

राम नाम जप

 राम नाम जप महिमा





जब आपके सामने कई मंत्र और नाम जप के लिए उपलब्ध हैं। तो फिर  मन दुविधा में पड़ जाता है कि क्या जपें क्या न जपें।


हालांकि गुरु मंत्र इष्ट मन्त्र सर्वोपरि होता है। अपने अपने स्वभाव और प्रारब्ध के अनुसार भी जप में रुझान होता है। फिर भी संन्तो ने शास्त्रों में सबसे ज्यादा महिमा राम नाम की गायी गई है। शायद इसके पीछे कुछ मुख्य तार्किक, मनोवैज्ञानिक, कलयुग में लोगो की शारीरिक व मानसिक क्षमता कारण हैं, जिनके बारे में विवेचन करने का प्रयास किया गया है।


राम नाम जपने में सबसे सूक्ष्म नाम है अर्थात एक छोटी यूनिट है। यह पावन नाम और बीज मंत्र ( रां ) दोनों का कार्य करता हैं।


राम नाम सगुणोपासक और निर्गुणोपासक दोनों ही जप सकते हैं


राम राम जपने में स्वासों का सबसे कम प्रयत्न लगता है। छोटी छोटी स्वांसों में भी राम नाम जपा जा सकता है। अन्य लम्बे मन्त्रों को जपने में स्वासों को भी नियंत्रण में करना पड़ता है। एक रोगी व्यक्ति भी कराहते हुए भी राम राम जप सकता है। 


सामान्यतः मन्त्रों को ॐ लगाये बिना नहीं जपा जाता। लेक़िन ॐ के जप को लेकर सामान्य गृहस्थ के मन में संशय बने रहता है कि ॐ का जप संसार से वैराग्य उत्पन्न करता है। इसीलिए सन्यास धारण करने के उपरान्त मुख्यतः ॐ का जप करा जाता है। इसलिए राम नाम सर्वसुलभ है। 


मंत्रो के जप को लेकर कुछ न कुछ नियम अवश्य ही होते हैं। राम नाम कभी भी किसी भी अवस्था में जपा जा सकता है। 


रामचरित मानस में नारद जी ने भगवान से राम नाम का महत्व सर्वाधिक हो ऐसा वरदान मांगा था। श्री तुलसीदास जी ने मानस में तो राम नाम की अप्रीतम ही महिमा गायी है। 


परम सिद्ध संत श्री नीम करोरी बाबा भी कहते थे। ज्यादा सिरदर्द न ले राम का नाम लेते रह जैसे हनुमान जी ने लिया था। राम नाम लेने से सब कार्य पूरे हो जाते हैं। नीम करोरी बाबा भी त्रिकालदर्शी संत हैं जो जानते थे कि कलयुग में मन, नियत व दिल बहुत कच्चे हैं एवं आमदनी,अन्न,जल,वायु शुद्ध नहीं है, बड़ी बड़ी साधनायें, हठयोग और पवित्रता मनुष्य के बस की बात नहीं।  ऐसे में बड़ी बड़ी बातें करने के बजाय मनुष्य अपने कर्मो को ठीक करते हुए बस राम नाम जपे वही काफी है। 


देवरहा बाबा ने भी राम नाम जपने को कहा जैसे दो लकड़ी को आपस में घिसने से अग्नि पैदा होती है। वैसे ही राम नाम और हॄदय के घर्षण से दिव्य ज्योति पैदा होगी।


मीरा बाई के भगवान कृष्ण ही इष्ट थे, परन्तु उन्होंने पद में गाया है कि गुरु ने उन्हें राम नाम ही दिया।


कबीर साहेब ने भी राम नाम ही जपा। कबीर पंथ और सिक्ख पंथ में राम नाम जप की अत्यंत महिमा है।


राम नाम जपते हुए प्रभु श्री राम या ज्योति स्वरूप परमात्मा का भावपूर्ण चिन्तन कर सकते हैं।  


जो भक्त श्री राम कृष्ण हरि स्वरूप के प्रति श्रद्धा रखते हैं।  उनके लिये नाम जपना हो तो राम नाम, यदि मंत्र जपना हो तो ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।’ और यदि स्तोत्र पढ़ना हो ‘श्री विष्णु सहस्रनाम।’, और कीर्तन करना हो तो ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ या महामंत्र ‘ हरे राम हरे राम राम राम....’ का कर सकते हैं।


अगर किसी को कहीं आश्रय न मिल रहा हो तो अंत में  राम नाम का आश्रय अवश्य लें। कभी कभी कोई व्यक्ति इतने तनाव या अवसाद में होता है कि उससे कोई स्तुति, पूजा पाठ, प्रार्थना, मन्त्र जप, नियम आदि नहीं बन पाते तो वो भी केवल राम नाम की शरण ले सकता है। 


बाकि सबका अपना अपना भाव और श्रद्धा है। क्योंकि अंततः सब नाम उस एक परम शक्ति के ही हैं। दीर्घ काल तक जपते जपते इस बात का एहसास होने लगता है। 


समर्थ गुरु रामदास, पापा रामदास,संत श्री राम, श्री राम शरणं संस्थान के संत स्वामी सत्यानंद जी, स्वामी प्रेम और स्वामी विश्वामित्र जी ने भी राम नाम का आश्रय लिया। 




Monday, May 3, 2021

कोरोना पर कार्मिक व आध्यात्मिक चिन्तन।

सर्वप्रथम श्री भगवान से प्रार्थना है वे शीघ्र अतिशीघ्र इस महामारी का अंत कर दें। जो लोग कोरोना के भयावह रूप से सामना कर चुके हैं वे ही इसका वास्तविक दर्द जानते हैं।


जहाँ समस्त संसार कोरोना से पीड़ित है, वहीं कहीं न कहीं श्री भगवान की गूढ़ रहस्यमयी लीला भी चल रही है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए यह विचार प्रकट हुआ है, कृपया अपनी समझ के अनुसार ग्रहण करें, क्योंकि इसकी कोई प्रमाणिकता तो दे नहीं सकते, यह भाव जगत की बात है।

ये बात सत्य है कोरोना हमारे फेफड़ो में हमला कर रहा है, ऑक्सीजन खत्म कर रहा है। क्योंकि हम मनुष्यों ने संसार को प्रदूषित करके रख दिया है, पेट्रोल, डीजल, प्लास्टिक कचरा, दिखावा, केमिकल्स युक्त भोजन, प्रदूषित नदिया, जहरीली खेती, tv चैनलों के  फूहड़ कार्यक्रम, प्रदूषण विशेषतः अमेज़ॉन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के जंगलों में लगी भीषण आग ने पृथ्वी के फेफड़ो का बहुत नुकसान कर दिया है, करोड़ो जानवर तड़प तड़प कर जल मरें हैं। कोई आवाज़ उठाने वाला नही, कोई देश मिलकर आग बुझाने वाले नहीं। हर कोई अपने में मस्त। आम जनता को तो कोई सरोकार ही नहीं, अपना परिवार, काम, धंधे बस और क्या।  भावनात्मक तौर पर भी कोई मतलब नहीं।  थोड़ा सा भी सामर्थ्य हुआ तो हम AC, कार फौरन खरीद लेते हैं । पर हूँ...पेड़ कौन लगाये, पशु पक्षी की सेवा कौन करे, ये तो हमारा काम नहीं है। हम दिन रात AC, Fridge, Car का उपयोग तो लेंगे पर पर्यावरण गया भाड़ में।  बस शायद अब अति हो गयी थी, घड़ा भर गया था, प्रकृति रूपी माँ ने पिछले साल 2020 में एक चेतावनी दी सोचा बच्चे सुधर जाएंगे, पर कहाँ, जूँ तक नहीं रेंगी किसी के,  वही दीवाली पर बम पटाखों की धूम धड़ाम, जानवरों का बलिदान के नाम पर कत्लेआम, दूर दूर तक पेड़ लगाने से कोई मतलब नहीं उल्टा सैकड़ो वृक्ष काट डाले। अब तो प्रकृति माँ को गुस्सा आना ही था, अब 2021 में एक कस के चेतावनी दे रहीं है, कोई बोले हमने क्या किया, तो भई अपराध में चुप रहने वाले का भी दोष होता ही है। अगर अब भी हम नही सुधरे तो शायद प्रकृति कही तीसरी भयावह लहर न कर दें। सावधान ! हमें अपने तौर तरीके जीने का ढंग बदलना ही होगा। और अपने हॄदय में करुणा दया भर के दूसरे पीड़ितो की यथा संभव सहायता करें। 

एक बंधु ने ऐसे समझाया है कि महाभारत में जब अश्वत्थामा ने नारायणास्त्र छोड़ा तो पांडवो की सेना काँप गई। तब श्री भगवान ने उपाय सुझाया कि अगर आप लोग विनम्र हो कर हाथ जोड़कर शस्त्र रख दें तो नारायणास्त्र स्वयं लौट जाएगा क्योंकि ये निहत्थों पर वार नही करता। अब जो मान गये, वे तो बच गए, कुछ जो भयाक्रांत हो घबरा गए या लड़े वो सब नाश हो गए। ऐसे ही ये कोरोना से न तो भयभीत हो हो कर प्राण त्याग दें और  न ही ज्यादा स्मार्ट बन कोरोना को हल्के में लें और सावधानी त्याग दें। श्री भगवान की चरण शरण लें विनम्र हो जायें और सावधानी रखते हुए शांत रहें, तथा आगे दिए कार्मिक उपाय करने प्रारम्भ कर दें। 

श्री भगवान ने रामचरितमानस में स्वयं कहा है, "हेतु रहित परहित रत सिला " अर्थात जो बिना निजी लाभ के दुसरो के हित में लगते हैं उनके गुण सरस्वती जी और वेद भी नही गा सकते।  श्री राम जी कहते हैं कि ,"परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥".

 अतः जिससे जो बने धन द्वारा, ऑक्सिजन, हॉस्पिटल, बेड की जानकारी द्वारा, भोजन द्वारा, निरंतर भगवन्नाम जप पाठ के द्वारा दूसरों की सहायता करें। कृपया ध्यान रखें ऐसे समय में श्री भगवान सबके कर्म और हृदय के भावों को विशेष रूप से देखते हैं। 

श्रो रामचरितमानस जी में कहा है, "अस को जीव जन्तु जग माही, जेहि रघुनाथ प्रानप्रिय नाही।।" अर्थात जग के जीव, जंतुओं में ऐसा कौन है, जिन्हें रघुनाथ जी प्राणों के समान प्रिय न हो। इसीलिए अपने हॄदय में श्री भगवान को बसा लें, उनका स्मरण करें। सुंदरकांड में बताया गया है कि श्री राम जी को  हृदय में रखने से शत्रु भी मित्रता करने लगते हैं। अतः कोरोना नुकसान न पहुंचा पायेगा, या फिर शत्रु भाव से श्री राम जी को भजता हुआ परलोक सिधारेगा। लेकिन सच में भजे और अगर उपरोक्त विचार थोड़ा सा भी सही लगा तो निम्न उपाय करें - 

सभी श्री हरि के प्यारो से निवेदन है कि इस विचित्र समय में अधिकाधिक श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ, भगवन्नाम का जप अपनो के लिए एवम जिनको अत्यंत आवश्यकता है उनके लिए करें। जो बिल्कुल सुरक्षित हैं, वें भी अन्य लोगो के लिए पाठ करें। जो लोग पूर्ण सहस्त्रनाम पढ़ने में सक्षम न हो , वे अच्युत अनंत गोविन्द नाम का स्मरण या सलंग्न स्तोत्र पढ़े।  


हर कोई चिकित्सा व वैज्ञानिक उपाय कर रहा है जो कि उचित भी है, करना भी चाहियें। मास्क, सामाजिक दूरी, खान-पान की सावधानी, भाप लेना, हल्दी का दूध, दवाई आदि अवश्य करें।  परन्तु हम सबसे मुख्य कार्मिक उपाय नहीं कर रहें हैं। क्योंकि सनातन धर्म में बिना प्रारब्ध कर्म के कोई प्रतिक्रिया हो ही नहीं सकती। अतः कार्मिक उपाय के तौर पर निम्न करने का प्रयास करें। 

1) अपने क्षेत्र की लोकल गौशाला में एवं पथमेड़ा, सूरश्याम, जड़खोर आदि जैसी परम पवित्र बड़ी गौशालाओं में ऑनलाइन तुरन्त सामर्थ्यनुसार अच्छा दान करें। आगे मासिक गौ सेवा का संकल्प उठायें। गौ सेवा से जुड़ने से अनर्थ न होगा। दो बातें देखी हैं या तो व्यक्ति को साहस, स्वास्थ्य, भयनाश लाभ होता है, या बहुत ही वृद्ध सज्जन की शान्तिप्रद गति होती है।

https://godhampathmeda.org/

https://www.surshyam.co/

https://jadkhor.org/



2) किसी अन्य व्यक्ति की चिकित्सा के लिए संस्थाओं जैसे उदय फाउंडेशन आदि के द्वारा या अपने शहर में ऑक्सिजन का, चिकित्सा व्यय का दान करें। 

https://www.udayfoundation.org/

3) पेड़, बगीचे न काटने का प्रयास करें व काटने पर दस गुने पेड़ लगाने व पोषण का संकल्प करें। वृक्षारोपण संस्थाओं से जुड़े तथा खूब वृक्षारोपण करें। घर की छत पर 10-20 पौधे अवश्य  लगाएं। सरकार को भी इस पर कानून लाना चाहियें कि हर व्यक्ति को अपने हिस्से की ऑक्सिजन अवश्य पैदा करनी चाहियें। शायद इसी बेहोशी से जगाने ये कोरोना आया है।

4) इस दुर्लभ काल में अपने हॄदय परिवर्तन पर ध्यान दें। गौ माता, पशु पक्षी, पेड़ पौधों, पर्यावरण, साधु समाज, अपने पड़ोसी, अपने विरोधी, दरिद्र व जरूरतमंदो की भी सहायता अवश्य करें। 

5) अपने पद, धन, प्रतिष्ठा, नाम, यश का अहंकार त्याग कर श्री हरि के , अपने इष्ट के चरण शरण हो लें। जैसी हरि की इच्छा हो उसको स्वीकार करें। 

शायद इसके अलावा कोई मार्ग नही है। सभी संतो से भी प्रार्थना आवाहन करें। क्योंकि भगवान राम ने कहा है कि ,"मोतें संत अधिक करि लेखा।।" संतो को मुझसे भी बढ़कर मानना, अतः दिव्य भगवदप्राप्त संतो से भी प्रार्थना करें।

 कलयुग में श्री भगवान की आज्ञा से कार्यरत पवनपुत्र हनुमान जी महाराज से भी प्रार्थना करें।  ध्यान दें श्री हनुमान जी पवन पुत्र हैं, उन्हें अपना ऑक्सीजन मान हॄदय, छाती में भर लें। जय श्री राम का उदघोष करें। 



हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविंद ! आप ही हमारे वैद्य, दवा, हॉस्पिटल, बेड, ऑक्सिजन सब कुछ आप ही हो ! ऐसा भाव रखें। वासुदेवं सर्वमिति ! जीत देखूँ तित नारायण ! सबकुछ वासुदेव ही हैं, जहाँ देखूँ वहीं नारायण हैं। ऐसा भाव द्वारा निर्भय हो जाएं। भक्त प्रह्लाद जी को याद रखें कि किस प्रकार उन्होंने सभी जगह भगवान नारायण के दर्शन किये और कोई भी विपत्ति उनका अहित न कर सकी। कुछ ऐसा ही भाव हॄदय में हमें भी विकसित करना है।

हे प्रभु हम सर्वतोभावेन आपकी शरण में हों। 🙏


मांत्रिक चिकित्सा की दृष्टि से उपाय

जैसा कि ऊपर बताया गया है आप श्री विष्णु सहस्रनाम या अच्युत अनंत गोविंद नामस्मरण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त राम रक्षा स्तोत्र, श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा शप्तशती का देवी महात्मय - ग्यारहवा अध्याय या 12वें अध्याय के 39 वाँ श्लोक महामारी नाश से संबंधित है, अधिकाधिक पाठ करें।


 






Monday, October 21, 2019

श्री विष्णु सहस्त्रनाम महिमा - Shri Vishnu Sahastranaam Mahima



Shri Vishnu Sahastranaam Mahima

Shri Vishnu Sahastranaam Benefits









कुछ बातें जो मैंने  हरि कृपा से विभिन्न स्रोतों से पढकर, सुनकर, समझकर मन मे संकलित कर रखी हैं, वो यहाँ सरल भाषा में कहता हूँ।

श्री महाभारत ग्रंथ में दिया गया श्री विष्णु सहस्त्रनाम सबसे ज्यादा प्रचलित सहस्त्रनाम है। यह एक ऐसा सहस्त्रनाम है जिसे स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं खड़े रहकर अनुमोदन किया है। यह परम् तेजस्वी श्री भीष्म पितामह द्वारा तनावग्रस्त, शंकाग्रस्त, व्यग्र श्री युधिष्ठिर जी को आखिरी समाधान के तौर पर बताया गया है। यह नाम भगवान के साकार रूप तथा निराकार रूप दोनो की उपासना में पढ़े जा सकते हैं। यहाँ तक सिक्ख धर्म मे कुछ भाई श्री हरि के 1000 नाम पढ़तें हैं। श्री विष्णु सहस्त्रनाम एक तरह से आपको लगभग 30 मिनट की भगवन्नाम जप साधना हेतु बैठाने में समर्थ है। सामान्यतः इस सहस्त्रनाम हेतु विशेष दीक्षा हेतु कोई आवश्यक शर्त नहीं है।  कोई भी, कहीं भी, किसी भी मानसिक अवस्था में जपा जा सकता है। ऐसा भी कहा जाता है, कलयुग में अधिकांश मन्त्र शापित, कीलित हैं, परन्तु श्री विष्णु सहस्रनाम में ऐसा कोई बंधन नहीं हैं। यह भवसागर को पार करने का सरलतम उपलब्ध उपाय है।



श्री विष्णु सहस्रनाम महिमा :-

श्री तुलसी दास जी ने कहा है -

जानें बिनु न होइ परतीती।
बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती॥
प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई।
जिमि खगपति जल कै चिकनाई॥4॥

प्रभुता जाने बिना ईश्वर पर विश्वास नहीं जमता, विश्वास के बिना प्रीति नहीं होती और प्रीति बिना भक्ति वैसे ही दृढ़ नहीं होती जैसे हे पक्षीराज! जल की चिकनाई ठहरती नहीं ॥4॥  

इसलिये यहां श्री विष्णु सहस्रनाम की महिमा, प्रभाव के बारे में जो भी जानकारी कहीं से भी  उपलब्ध हुई है, उसका संकलन दिया जा रहा है। ताकि हमारा मन श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ में लगे। सच्चाई यही है कि मन को लालच दिये बिना यह किसी काम में नहीं लगता।

        देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी श्री के एन राव कुंडली का केवल एक ही उपाय बताते हैं कि सुबह उठकर स्नानकर सबसे पहले श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करे, बस और कोई उपाय नहीं। उन्होंने दस हज़ारों की संख्या में लोगों को लाभ प्राप्त करते देखा है।  श्री के एन राव भारत के एकमात्र ज्योतिषी हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में ज्योतिष भविष्यवाणी को सही साबित करने हेतु मुकदमा लड़ा और जीता भी। जिन्हीने दिल्ली में भारतीय विद्या पीठ में ज्योतिषी पाठ्यक्रम शुरू किये। विशेषतः बुध और बृहस्पति की दशा में तो विशेषकर पाठ कर सकते हैं।

         श्री कांची  पीठ के  परम आदरणीय शंकराचार्य श्रद्धेय महापरिवा श्री चंद्रशेखर सरस्वती जी ने भी एक लीला कर श्री विष्णु सहस्रनाम की महिमा और श्री शिव जी और श्री विष्णु में साम्य दर्शाया था। एक दिन शिव पूजन के कार्यक्रम के दिन तीव्र ज्वर हो जाने पर उन्होंने वैदिक ब्राह्मणों द्वारा श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करवाया, तब ज्वर उतर जाने पर जनसमूह के सामने श्री शिव पूजन हेतु उपस्थित हो पाये।



   श्री साई सद्चरित्र पुस्तक के अनुसार, शिरडी के श्री साई बाबा ने अपने एक भक्त से कहा कि," शमा, एक दिन मेरे हृदयँ में घबराहट हुई, तो मैने श्री विष्णु सहस्रनाम की पुस्तक को सीने से लगाया तो मुझे लगा अल्लाह उतर आया है और मुझे आराम आ गया है। इस सहस्त्रनाम को पढ़ना बहुत अच्छा है, चाहें एक नाम रोज़ पढ़ो।"  साई बाबा के भक्त श्री राधा कृष्ण स्वामी जी महाराज भी जीवन भर लोगों से श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करवाते रहे।  आज भी साई बाबा के कई भक्त श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।

      श्री स्वामी शिवानंद सरस्वती जी ( डिवाइन लाइफ सोसाइटी, ऋषिकेश) के शिष्य श्री चिन्मयानंद जी महाराज तथा श्री कृष्णानंद जी ने भी हज़ारों लोगों को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने को प्रेरित किया।

        एक डॉक्टर जिन्होंने अपनी प्रैक्टिस एवं नर्सिंग होने छोड़कर अपना  जीवन श्री विष्णु सहस्रनाम की साधना को समर्पित कर दिया, उन्होंने सामूहिक पाठ द्वारा समुद्र के किनारे आने वाली तबाही को नियंत्रित करने में अद्भुत परिणाम देखे, उन्होंने 3000 से लेकर 20000 तक घरों में सामूहिक पाठ करवाये, कई मिश्रित परिणामों जो आये, समुद्र का भयावह प्रकोप काम होने के साथ साथ, उसमे में एक बात जो तय थी वो ये कि जिन घरों में सहस्त्रनाम का पाठ किया गया, सबने सकारात्मक परिवर्तन महसूस किए।

         सबसे ज्यादा टीका/ व्याख्या इसी सहस्त्रनाम पर लिखी गयी हैं, आदि शंकराचार्य जी श्री ललिता सहस्त्रनाम पर व्याख्या  लिखना चाहते थे, पर आदि शक्ति माँ ने एक छोटी कन्या के रूप में आ कर पहले श्री विष्णु सहस्रनाम पर भाष्य लिखने को कहा। भारत मे लगभग सभी श्री हरि , श्री कृष्ण, श्री राम जी के मंदिरों में वेंकटेश सुप्रभातम तथा श्री विष्णु सहस्त्रनाम द्वारा पूजा, अर्चना की जाती है, भगवान को प्रातः उठाया जाता है।

 श्री गीता प्रेस के आदरणीय श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी कहते हैं, स्तुति प्रार्थनाओं को मात्र कविता न समझ लें, जिस प्रकार हीरा, पन्ना, माणिक अलग अलग भी  बहुत ही कीमती और आकर्षक होते हैं, यदि कोई पारखी जोहरी उन्हें एक राजमुकुट पर जड़ दें, उनकी शोभा एवं भव्यता, प्रभाव देखने लायक होता है, उसी प्रकार सिद्ध, सामर्थ्यवान भीष्म जीने श्री भगवान के पावन नामों को एक विशेष क्रम में जड़कर श्री विष्णु सहस्रनाम की रचना की है। जिसकी शोभा एवम महत्व अनुपम है। 

श्री भालचंद्र ठाकर ने देव शंकर बापा से पूछा कि श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से क्या सच में जो लिखे हैं वे फायदे होते हैं? तब बापा ने कहा :- श्री भीष्म पितामह जैसे पवित्र पुरुष बाण शैया पर पड़े हों, श्री युधिष्ठिर जैसे सत्यनिष्ठ पूछनेवाले हों और भगवान श्रीकृष्ण की हाजिरी हो तब भगवान के कहने से श्री युधिष्ठिर मानव जाति के कल्याण के लिए प्रश्न करते हों ऐसी बात में क्या हमसे शंका हो सकती है???किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की तकलीफ हो और वह व्यक्ति श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ करें तो उसकी वह तकलीफ रहेगी नहीं।

      श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ से कई लोगों के जीवन की रक्षा हुई, कई लोगों के बिखरें जीवन सवंर गये। कई लोगों ने कहा कोई चमत्कार तो नहीं हुआ परंतु जीवन में एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रादुर्भाव हुआ, और वो जिस स्थान पर हैं, श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ स्वरूप पहुँचे हैं।


एक बात ध्यान रखें कि श्री हरि आदिपुरुष महा विष्णु हमारे परम प्रिय हैं और इस संसार मे एक मात्र सुहृद हैं, एक मात्र सखा, रिश्तेदार हैं। ऐसा ध्यान करते हुए पाठ करें।

    जिन्हें संस्कृत पाठ कठिन लगे वो 15-20 दिन यु-ट्यूब vedio सुनते हुए पढ़े, बाद में पढ़ना आसान हो जायेगा। एक विशेष बात , आपका मन पाठ में बैठने तक विद्रोह कर सकता है, आलस्य करेगा, प्रमाद करेगा लेकिन एक बार बैठ जाये तो धीरे धीरे आनंद आने लगता है। जो पढ़ ही ना पायें, वो सुनना तो कदापि बंद न करें। घर में सुबह चलायें। कुछ भी हो जाये पाठ बन्द न हो।



      यह संसार एक आश्चर्य है, जो बहुत सूखी धनी देखें जाते है वो तो भगवन्नाम में विशेष रुचि न ले समझ में आता है, परन्तु एक से एक दुखी लोग भी लाख कहने पर भगवन्नाम नहीं जपते हैं, यह एक विडम्बना ही तो है। जबकि 'हारे को हरिनाम' ही तो है।  अरे भाई इस कई वर्षों के जीवन में जहाँ रिश्ते नाते, धन, स्वास्थ्य, मान सम्मान कुछ भी स्थिर नहीं है, एक से भयंकर एक मानसिक तथा शारिरिक रोग हैं, पग पग पर प्रारब्ध जनित कष्ट है, फ़िर भी लोग आर्त भाव से भगवान की ओर रूख नहीं करते।

पाठ करते समय भाव बनाये रखने हेतु दी गईं छवियों का मन में ध्यान रखें।


श्री विष्णु सहस्त्रनाम की महिमा, लाभ और भक्तों को पाठ द्वारा प्राप्त अनुभव शेयर करने के लिए एक अलग ब्लॉग बनाने का प्रयास कर रहें हैं.। अगर आप भी अपने अनुभव साझा करना चाहते हैं तो कमेंट में शेयर करें।











Saturday, November 17, 2018

श्री राधे: और माँ कामाख्या


         
जय गुरुदेव जय माँ ललिता त्रिपुरसुन्दरी !

       एक प्रश्न इस भ्रमित मन मे उठता था कि तत्त्वतः सभी माँ के स्वरूप एक ही हैं, फिर भी कहीं माँ ललिता त्रिपुर सुंदरी एवं श्री राधे: में ऐक्य का वर्णन पढ़ने में नहीं आता। यहां पर भी मेरी प्यारी माँ ने समयांतर में उत्तर प्रदान किया। मैं एक दिन वैसे ही इंटरनेट पर कुछ spiritual पढ़-ढूंढ रहा था। अचानक देवीपुरम के श्री अमृतानंद जी के अनुभव का पृष्ठ खुल गया, अंतः प्रेरणा से मैं उस लेख को पढ़ता गया और मैने पाया श्री अमृतानन्द जी के सामने माँ कामाख्या का स्वरूप प्रकट हुआ जो कुछ समय उपरांत भगवान कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति में रूपान्तरित हो गया। स्वामी जी को तब माँ आदिशक्ति और भगवती श्री राधे: के स्वरूप में एकता का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ।

दुसरा अनुभव सदगुरुदेव के वचनामृत द्वारा प्राप्त हुआ। श्री गुरु जी ने बताया जब श्री राधिका जी अपने स्वरूप को शीशे में देख रहीं थी,वे स्वयं के दिव्य स्वरूप पर मोहित हो गयी और देखती ही रह गयी। वह दिव्य स्वरूप ही माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी के स्वरूप में प्रकट हुआ इसीलिए श्री राधा जी व श्री ललिता अम्बा में तात्विक एक्य है 

तीसरा समाधान गीता प्रेस के श्री राधे बाबा के अनुभव द्वारा प्राप्त हुआ। राधे बाबा निकुंज लीलाओं के दर्शन करते थे, इसी ध्यान में भगवान श्री कृष्ण जी ने उन्हें माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी का मंत्र जपने को दिया था। और श्री राधे बाबा अपने गुरु श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की धरम पत्नी को माँ ललिता अम्बा के रूप में देखते थे 


        मैं माँ की करुणामयी कृपा से अभिभूत हुआ माँ का स्मरण करने लगा कि कैसे माँ हर समय हमारी हर इच्छा को ध्यान में रख समाधान प्रदान करती हैं।


Saturday, August 4, 2018

Lord Hari - My Maternal Uncle :-)




श्री माता पद्मनाभ सहोदरी हुईं तो श्री भगवान हमारे मामा जी हुए। यह पावन सम्बन्ध हमारा वैष्णव परम्परा से हुआ।

ऐसा नहीं है कि अच्छे मामा नहीं होते परंतु  सामान्यतः कंस मामा तथा शकुनि मामा की कथाएँ सुनते सुनते हमारी सांसारिक मामाओं के प्रति कुछ अच्छी भावना नहीं बन पाती।

इसीलिए माँ ललिता अम्बा की कृपा से एक और समाधान प्राप्त हुआ, श्री हरि, श्री राम जी, श्री कृष्ण जी और श्री जगन्नाथ भगवान जी हमारे मामा हुए, बढ़िया बात हुई ना भाई!

अब श्री भगवान भी अपने अनुभव से बहुत अच्छे से जानते हैं सांसारिक मामाओं के बारे में। इसलिए वे दिव्य स्वरूप होने से स्वयं भी बहुत अच्छे मामा जी की जिम्मेदारी निभायेंगे, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

दूसरा मेरी माँ की अनन्य भक्ति भी मामा जी की कथा प्रसंग सुनने से भ्रमित नहीं होगी। आखिर हम एक परिवार जो हुए ना।

जय माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी !
जय श्री गुरुदेव भगवान !
जय श्री हरि ! 





Friday, May 25, 2018

Sri Ram and Sri Mata - श्री रामचरितमानस "श्री"


         

Before we start article Divine Mother has shown another Leela. As Sri Mata is typed in title. This secret flashed in front of eyes.

S R I M A T A =  SITA+RAM
    R   M A        =  RAM
S    I        T A   =  SITA

Isn't it lovely ?

माँ से हमेशा यह जिज्ञासा अंतर्मन में उठती रही है, राम और श्री विद्या में क्या संबंध है। माँ अपने ढंग से उत्तर व समाधान प्रदान करती रहती हैं।



उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में डोल नामक स्थान में पूज्य तपस्वी बाबा कल्याणदास जी द्वारा दुनिया का सबसे भारी श्री यंत्र (15 क्विंटल) स्थापित किया गया है। बाबा जी ने इस उपलक्ष्य में रामकथा के अग्रणी व शिरोमणि कथावाचक संत श्री मोरारी बापू द्वारा रामकथा का सप्त दिवसीय आयोजन रखा। श्री बापू ने कथा का विषय " मानस-श्री " रखा तथा श्री को केंद्र में रखते हुए सवांद किया। कथा विभिन्न प्रवाहों से होती गुजर रही थी, कि एक दिन मोरारी बापू ने आवेश में घोष किया, राम जी ही श्री हैं, श्री ही राम जी हैं, राम , श्री यंत्र व त्रिपुरा सुन्दरी एक ही हैं। यह पंक्ति सुनते ही मेरी आंखें माँ की लीला सोच कर भर आयीं, और समझ में आया कि सात दिनो की कथा में से माँ ने मेरे जाने के लिये पंचम दिन ही क्योँ चुना। सामान्यतः मैं यात्राओं से बचता हूँ, विशेषतः लंबी पर्वतीय यात्राओं से। परन्तु डोल आश्रम के बारे में मैने सोचा था दो-ढाई घंटे का रास्ता होगा, इसलिये जाने का प्रोग्राम बना लिया, परन्तु जब चले तो चार घंटे लग गये। यह confusion भी माँ की लीला ही थी, उसने अपने शिशु को बुलाना जो था।

माँ ललिताम्बा से यही प्रार्थना है, इसी प्रकार अपनी लीलाओं द्वारा अपने शिशु को आनन्द प्रदान करती रहें। हमसे बातें करती रहें, आखिर हमारी माँ  लीलाविनोदिनी जो हैं।


Sunday, May 20, 2018

Purushottam Month: Sri Lalita and Vishnu Sahastranaama !


         
Here we'll with all love, humility and respect try to see common names in these two amazing, wonderful, divine Sahastranama.

Sri Lalita Sahastranaama -  Most important, secret Sahastranaama of Divine Mother. If read with little Bhava, it will change your life in mysterious way. You'll find yourself in lap of Divine Mother.

Shri Vishnu Sahastranaama - Most read Sahastranaama of Lord Shri Hari, also recommended by Top Astrology Giant Shri K N Rao as The Only remedy of all astrology issues. He suggests just read it after morning bath, religiously. Read article Importance & Benefits of Shri Vishnu Sahastranaam

HERE WE ARE NOT COMPARING TWO SAHASTRANAAMA, as She is पद्मनाभसहोदरी, we out of love and respect of both trying to find common names, attributes of Them. So devotees of One can relate to Other. For example, in Purushottam Month, Mal Maas Or Adhik Mass one can read any of Sahastrabahu without any confusions. 

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