हे माँ । यह जो में विगत ३-४ वर्षो से अध्यात्मिक ज्ञान पढ़-सुन रहा हूँ। यह सब तेरी ही कृपा हो सकती है वरना यह सब पढ़ना-सुनना आश्चर्य लगता है। सामान्यतः बुद्धि इन बातों को पकडती ही नहीं हैं । ऐसे में यह बुद्धि जो इन बातों को पकडती है वो सिर्फ तेरी अनुकम्पा के बिना नहीं हो सकता है। बस माँ अब तेरे आशीर्वाद से जो पढ़ा-सुना है वो अन्दर घटने भी लग जाये।
एक तरफ लगता है तूने मेरा सब कुछ ले लिया है परन्तु दूसरी तरफ दीखता है कि तू तो बहुत कुछ देने की तैयारी में है।
हे अम्बे । अब जो भी हो मुझे अपने चरण कमलों में पूर्ण समर्पण प्रदान कर चरण-शरण में ले लो। मुझे श्रद्धा और विश्वास प्रदान करो ,माँ । अब अन्दर से समझ में आता है माँ कि क्योँ स्वामी विवेकानंद ने माँ काली से श्रद्धा, विश्वास, जानने और मानने के अलावा कुछ नहीं माँगा था।
माँ । मैं तो वो बालक हूँ जो पुस्तके पढ़ पढ़ कर बोलना सिखा है। जैसे अ से अनार । तेरे प्रयोगात्मक ज्ञान का अनुभव तो तेरी कृपा से ही होगा, न माँ ।
हे त्रिपुरा सुंदरी मैया । तूने ही तो त्रिपुरा रहस्य में कहा है कि जो भी गंभीरता तथा ईमानदारी से प्रयास करेगा तू अपनी कृपा द्वारा उसके आलस्य,सुस्ती को स्वयं दूर कर देगी । अतः मैया में अब हर समय तेरे ही चिंतन का अभ्यास करूंगा ताकि कभी भी तेरा विस्मरण न हो। ऐसा मुझको आशीर्वाद दे।
माँ । तू तो नित्य है, सर्व शक्तिमयी है, सर्वज्ञ है, सर्वत्र है, सर्व नाम - रूप स्वरूप है, सर्व मंत्रमयी तथा सर्व शब्दमयी है, हमारा आत्मस्वरूप भी तो तू ही है ना माँ। अतः माँ । मैं जो भी हिलता-डुलता हूँ , जो भी बोलता-चालता हूँ, जिससे भी व्यवहार करता हूँ ; उस सबको तू अपनी ही आराधना मानकर स्वीकार कर लेना माँ। इससे मैं एक पल के लिए भी तुझसे रहित न होऊंगा। जब सोता हूँ तो तेरे चरणकमलों पर ही सिर रख कर सोता हूँ। जब खाता हूँ तो कभी तो तू मुझे अपने कर कमलों से खिलाती है और कभी मैं तुझे वैशवानर अग्नि में भोग लगाता हूँ । माँ क्यूंकि यह देह भी मेरी नहीं हैं यह तो तेरा एक औज़ार, एक अस्त्र है। तो इसका मतलब है हर दैनिक क्रिया में तू ही मुझे पालती-पोसती है।
माँ हर वो परिस्थिति तथा व्यक्ति जिसके कारण मैंने अपने को दुखी माना हो या व्यतिथ हुआ हूँ ; वस्तुतः मेरा परम हितैषी ही है। उसने मुझे तेरे और करीब ला दिया है ,माँ।
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