|| जय माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी ||
|| भगवान श्री सीता राम जी के रूप में चरणों में अर्पित ||
|| भगवान श्री सीता राम जी के रूप में चरणों में अर्पित ||

प्रभु हो सकता है मेरी भक्ति , समर्पण , भाव , रस जूठा हो या चालाक मन का दिखावा हो, भयवश हो. कैसी भी हो पर भगवन , आपको शबरी के जूठे बेर याद हैं न ? विदूर जी के घर के छिलके स्मरण हैं न ? ऐसी मेरी जूठी भक्ति, भाव , रस को चरणों में स्वीकार कर लीजिये न. अपनी परम्परा निभायिए स्वामी. मेरे पास ले दे के यही है जो है , और कहाँ से लाऊं.
नाथ ! आपके परम परम परम प्रिय सुन्दर भक्तो की कथाये, बातें , भजन, भक्ति की जूठ पाकर अपना समय व्यतीत करता हूँ. जिस प्रकार मीरबाई, रसखान, सूरदास, पोतना, कुलशेखर आलवार, नामदेव, एकनाथ, कबीर, देवरहा बाबा जी, स्वामी रामकृष्ण परम हंस, रज़िया,नज़र, तुलसीदास जी, जयदेव, पीपा जी, गोरा कुम्हार, सुकुबाई, स्वामी शिवानन्द जी, नीब करोरी बाबा जी, नरसी भगत, जीव गोस्वामी , रूप व् सनातन जी, श्री चैतन्य महाप्रभु जी, नानक जी , समर्थ गुरु रामदास जी, संत तुकाराम जी, दादू, संत हरिदास, हरि बाबा, उड़िया बाबा, करपात्री जी महाराज, स्वामी अखंडानन्द सरस्वती जी, रामसुखदास जी, रामचंद्र डोंगरे जी, भाई जी, सिद्धाश्रम के सभी पावन संत, साधक, महावतार बाबा जी, आनंदमयी माँ, नानतिन बाबा, सोमवारी बाबा, गुदड़ी वाले बाबा, भद्राचलम रामदास, गुरुवर श्री कृष्णा चैतन्य आनंद जी, विनोद अग्रवाल , अलका गोयल, विनोद भार्गव जी आपसे किसी न किसी प्रकार व् किसी न किसी रूप में आपसे जूड़े गए हैं. आपके हो गए हैं.
और राम जी , इन सभी पवन भक्तो, संतो के चरित्र को पढ़-सुनकर में आपके नाम से जुड़ा गया हूँ. प्रभु इसे मेरी मौकापरस्ती न समझिएगा कि में दुःख के कारण आपसे जुड़ा गया हूँ. दुःख में बालक माता-पिता को ही पुकारा करते हैं. माया रुपी कांटे को निकलने के लिए दुख रुपी सुई तो लगनी ही पड़ती हैं या स्वामी माया रुपी निद्रा से जगाने के लिए दुख रुपी सुई चुभानी पड़ती ही हे. और आप तो मेरे शाश्वत माता-पिता हैं. कैसे न गुहार लगाऊँ आपसे. और माता पिता ही क्या अब तो सारे रिश्ते - नाते भाई, चाचा, ताऊ, मामा, ग्राहक, माल देने वाला, डाक्टर , राजा, सहायक, अम्मा , मित्र, अड़ोसी-पडोसी सब आप से ही हैं, राम जी. " सीता राममय सब जग जानी, करहूँ प्रणाम जोरी जुग पानी ".
राम जी ! मैंने आपको इतने सारे आत्मीय भक्तो का स्मरण करा दिया - सोचता हूँ कि उन सबका एक साथ स्मरण आते ही आपकी करूणा, ममता, दया, अहैतुकी कृपा के हिय-सागर में उफान आ जायेगा और उस उफान में एक-आध छींट पा कर क्या पाता मैं निहाल हो जाऊं. मैं भी न कुछ भी कहता रहता हूँ प्रभु , आप तो सर्वज्ञ, अन्तर्यामी, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, नित्य शुद्ध-बुद्ध हैं सब जानते ही हैं.
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