Monday, January 2, 2017

|| भाव सुमन -०२- जिंदगी के खेल ||

|| जय माँ ललिता त्रिपुरा सुन्दरी ||
|| भगवान श्री सीता राम जी के रूप में चरणों में अर्पित ||



जिन्दगी के खेल में इस प्रकार खेलना चाहियें जैसे दो मित्र खेल खेल रहें हों. कोई भी जीते या हारे, निर्लिप्त भाव हो. और वो कैसे आएगा- सामने वाले में अपने आराध्य, ईष्ट देव की छवि का दर्शन करें. वे प्रभु अन्तर्यामी सबके आत्मा हैं. 


न हमें उनकी जीत का गम है, और न अपनी हार का गम हैं. 
दोनों तरफ है जीत मेरे राम की, इस ही ख़ुशी में मेरी आँखे नम हैं.

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