Friday, September 3, 2021

राम नाम जप

 राम नाम जप महिमा





जब आपके सामने कई मंत्र और नाम जप के लिए उपलब्ध हैं। तो फिर  मन दुविधा में पड़ जाता है कि क्या जपें क्या न जपें।


हालांकि गुरु मंत्र इष्ट मन्त्र सर्वोपरि होता है। अपने अपने स्वभाव और प्रारब्ध के अनुसार भी जप में रुझान होता है। फिर भी संन्तो ने शास्त्रों में सबसे ज्यादा महिमा राम नाम की गायी गई है। शायद इसके पीछे कुछ मुख्य तार्किक, मनोवैज्ञानिक, कलयुग में लोगो की शारीरिक व मानसिक क्षमता कारण हैं, जिनके बारे में विवेचन करने का प्रयास किया गया है।


राम नाम जपने में सबसे सूक्ष्म नाम है अर्थात एक छोटी यूनिट है। यह पावन नाम और बीज मंत्र ( रां ) दोनों का कार्य करता हैं।


राम नाम सगुणोपासक और निर्गुणोपासक दोनों ही जप सकते हैं


राम राम जपने में स्वासों का सबसे कम प्रयत्न लगता है। छोटी छोटी स्वांसों में भी राम नाम जपा जा सकता है। अन्य लम्बे मन्त्रों को जपने में स्वासों को भी नियंत्रण में करना पड़ता है। एक रोगी व्यक्ति भी कराहते हुए भी राम राम जप सकता है। 


सामान्यतः मन्त्रों को ॐ लगाये बिना नहीं जपा जाता। लेक़िन ॐ के जप को लेकर सामान्य गृहस्थ के मन में संशय बने रहता है कि ॐ का जप संसार से वैराग्य उत्पन्न करता है। इसीलिए सन्यास धारण करने के उपरान्त मुख्यतः ॐ का जप करा जाता है। इसलिए राम नाम सर्वसुलभ है। 


मंत्रो के जप को लेकर कुछ न कुछ नियम अवश्य ही होते हैं। राम नाम कभी भी किसी भी अवस्था में जपा जा सकता है। 


रामचरित मानस में नारद जी ने भगवान से राम नाम का महत्व सर्वाधिक हो ऐसा वरदान मांगा था। श्री तुलसीदास जी ने मानस में तो राम नाम की अप्रीतम ही महिमा गायी है। 


परम सिद्ध संत श्री नीम करोरी बाबा भी कहते थे। ज्यादा सिरदर्द न ले राम का नाम लेते रह जैसे हनुमान जी ने लिया था। राम नाम लेने से सब कार्य पूरे हो जाते हैं। नीम करोरी बाबा भी त्रिकालदर्शी संत हैं जो जानते थे कि कलयुग में मन, नियत व दिल बहुत कच्चे हैं एवं आमदनी,अन्न,जल,वायु शुद्ध नहीं है, बड़ी बड़ी साधनायें, हठयोग और पवित्रता मनुष्य के बस की बात नहीं।  ऐसे में बड़ी बड़ी बातें करने के बजाय मनुष्य अपने कर्मो को ठीक करते हुए बस राम नाम जपे वही काफी है। 


देवरहा बाबा ने भी राम नाम जपने को कहा जैसे दो लकड़ी को आपस में घिसने से अग्नि पैदा होती है। वैसे ही राम नाम और हॄदय के घर्षण से दिव्य ज्योति पैदा होगी।


मीरा बाई के भगवान कृष्ण ही इष्ट थे, परन्तु उन्होंने पद में गाया है कि गुरु ने उन्हें राम नाम ही दिया।


कबीर साहेब ने भी राम नाम ही जपा। कबीर पंथ और सिक्ख पंथ में राम नाम जप की अत्यंत महिमा है।


राम नाम जपते हुए प्रभु श्री राम या ज्योति स्वरूप परमात्मा का भावपूर्ण चिन्तन कर सकते हैं।  


जो भक्त श्री राम कृष्ण हरि स्वरूप के प्रति श्रद्धा रखते हैं।  उनके लिये नाम जपना हो तो राम नाम, यदि मंत्र जपना हो तो ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।’ और यदि स्तोत्र पढ़ना हो ‘श्री विष्णु सहस्रनाम।’, और कीर्तन करना हो तो ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ या महामंत्र ‘ हरे राम हरे राम राम राम....’ का कर सकते हैं।


अगर किसी को कहीं आश्रय न मिल रहा हो तो अंत में  राम नाम का आश्रय अवश्य लें। कभी कभी कोई व्यक्ति इतने तनाव या अवसाद में होता है कि उससे कोई स्तुति, पूजा पाठ, प्रार्थना, मन्त्र जप, नियम आदि नहीं बन पाते तो वो भी केवल राम नाम की शरण ले सकता है। 


बाकि सबका अपना अपना भाव और श्रद्धा है। क्योंकि अंततः सब नाम उस एक परम शक्ति के ही हैं। दीर्घ काल तक जपते जपते इस बात का एहसास होने लगता है। 


समर्थ गुरु रामदास, पापा रामदास,संत श्री राम, श्री राम शरणं संस्थान के संत स्वामी सत्यानंद जी, स्वामी प्रेम और स्वामी विश्वामित्र जी ने भी राम नाम का आश्रय लिया। 




Monday, May 3, 2021

कोरोना पर कार्मिक व आध्यात्मिक चिन्तन।

सर्वप्रथम श्री भगवान से प्रार्थना है वे शीघ्र अतिशीघ्र इस महामारी का अंत कर दें। जो लोग कोरोना के भयावह रूप से सामना कर चुके हैं वे ही इसका वास्तविक दर्द जानते हैं।


जहाँ समस्त संसार कोरोना से पीड़ित है, वहीं कहीं न कहीं श्री भगवान की गूढ़ रहस्यमयी लीला भी चल रही है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए यह विचार प्रकट हुआ है, कृपया अपनी समझ के अनुसार ग्रहण करें, क्योंकि इसकी कोई प्रमाणिकता तो दे नहीं सकते, यह भाव जगत की बात है।

ये बात सत्य है कोरोना हमारे फेफड़ो में हमला कर रहा है, ऑक्सीजन खत्म कर रहा है। क्योंकि हम मनुष्यों ने संसार को प्रदूषित करके रख दिया है, पेट्रोल, डीजल, प्लास्टिक कचरा, दिखावा, केमिकल्स युक्त भोजन, प्रदूषित नदिया, जहरीली खेती, tv चैनलों के  फूहड़ कार्यक्रम, प्रदूषण विशेषतः अमेज़ॉन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के जंगलों में लगी भीषण आग ने पृथ्वी के फेफड़ो का बहुत नुकसान कर दिया है, करोड़ो जानवर तड़प तड़प कर जल मरें हैं। कोई आवाज़ उठाने वाला नही, कोई देश मिलकर आग बुझाने वाले नहीं। हर कोई अपने में मस्त। आम जनता को तो कोई सरोकार ही नहीं, अपना परिवार, काम, धंधे बस और क्या।  भावनात्मक तौर पर भी कोई मतलब नहीं।  थोड़ा सा भी सामर्थ्य हुआ तो हम AC, कार फौरन खरीद लेते हैं । पर हूँ...पेड़ कौन लगाये, पशु पक्षी की सेवा कौन करे, ये तो हमारा काम नहीं है। हम दिन रात AC, Fridge, Car का उपयोग तो लेंगे पर पर्यावरण गया भाड़ में।  बस शायद अब अति हो गयी थी, घड़ा भर गया था, प्रकृति रूपी माँ ने पिछले साल 2020 में एक चेतावनी दी सोचा बच्चे सुधर जाएंगे, पर कहाँ, जूँ तक नहीं रेंगी किसी के,  वही दीवाली पर बम पटाखों की धूम धड़ाम, जानवरों का बलिदान के नाम पर कत्लेआम, दूर दूर तक पेड़ लगाने से कोई मतलब नहीं उल्टा सैकड़ो वृक्ष काट डाले। अब तो प्रकृति माँ को गुस्सा आना ही था, अब 2021 में एक कस के चेतावनी दे रहीं है, कोई बोले हमने क्या किया, तो भई अपराध में चुप रहने वाले का भी दोष होता ही है। अगर अब भी हम नही सुधरे तो शायद प्रकृति कही तीसरी भयावह लहर न कर दें। सावधान ! हमें अपने तौर तरीके जीने का ढंग बदलना ही होगा। और अपने हॄदय में करुणा दया भर के दूसरे पीड़ितो की यथा संभव सहायता करें। 

एक बंधु ने ऐसे समझाया है कि महाभारत में जब अश्वत्थामा ने नारायणास्त्र छोड़ा तो पांडवो की सेना काँप गई। तब श्री भगवान ने उपाय सुझाया कि अगर आप लोग विनम्र हो कर हाथ जोड़कर शस्त्र रख दें तो नारायणास्त्र स्वयं लौट जाएगा क्योंकि ये निहत्थों पर वार नही करता। अब जो मान गये, वे तो बच गए, कुछ जो भयाक्रांत हो घबरा गए या लड़े वो सब नाश हो गए। ऐसे ही ये कोरोना से न तो भयभीत हो हो कर प्राण त्याग दें और  न ही ज्यादा स्मार्ट बन कोरोना को हल्के में लें और सावधानी त्याग दें। श्री भगवान की चरण शरण लें विनम्र हो जायें और सावधानी रखते हुए शांत रहें, तथा आगे दिए कार्मिक उपाय करने प्रारम्भ कर दें। 

श्री भगवान ने रामचरितमानस में स्वयं कहा है, "हेतु रहित परहित रत सिला " अर्थात जो बिना निजी लाभ के दुसरो के हित में लगते हैं उनके गुण सरस्वती जी और वेद भी नही गा सकते।  श्री राम जी कहते हैं कि ,"परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥".

 अतः जिससे जो बने धन द्वारा, ऑक्सिजन, हॉस्पिटल, बेड की जानकारी द्वारा, भोजन द्वारा, निरंतर भगवन्नाम जप पाठ के द्वारा दूसरों की सहायता करें। कृपया ध्यान रखें ऐसे समय में श्री भगवान सबके कर्म और हृदय के भावों को विशेष रूप से देखते हैं। 

श्रो रामचरितमानस जी में कहा है, "अस को जीव जन्तु जग माही, जेहि रघुनाथ प्रानप्रिय नाही।।" अर्थात जग के जीव, जंतुओं में ऐसा कौन है, जिन्हें रघुनाथ जी प्राणों के समान प्रिय न हो। इसीलिए अपने हॄदय में श्री भगवान को बसा लें, उनका स्मरण करें। सुंदरकांड में बताया गया है कि श्री राम जी को  हृदय में रखने से शत्रु भी मित्रता करने लगते हैं। अतः कोरोना नुकसान न पहुंचा पायेगा, या फिर शत्रु भाव से श्री राम जी को भजता हुआ परलोक सिधारेगा। लेकिन सच में भजे और अगर उपरोक्त विचार थोड़ा सा भी सही लगा तो निम्न उपाय करें - 

सभी श्री हरि के प्यारो से निवेदन है कि इस विचित्र समय में अधिकाधिक श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ, भगवन्नाम का जप अपनो के लिए एवम जिनको अत्यंत आवश्यकता है उनके लिए करें। जो बिल्कुल सुरक्षित हैं, वें भी अन्य लोगो के लिए पाठ करें। जो लोग पूर्ण सहस्त्रनाम पढ़ने में सक्षम न हो , वे अच्युत अनंत गोविन्द नाम का स्मरण या सलंग्न स्तोत्र पढ़े।  


हर कोई चिकित्सा व वैज्ञानिक उपाय कर रहा है जो कि उचित भी है, करना भी चाहियें। मास्क, सामाजिक दूरी, खान-पान की सावधानी, भाप लेना, हल्दी का दूध, दवाई आदि अवश्य करें।  परन्तु हम सबसे मुख्य कार्मिक उपाय नहीं कर रहें हैं। क्योंकि सनातन धर्म में बिना प्रारब्ध कर्म के कोई प्रतिक्रिया हो ही नहीं सकती। अतः कार्मिक उपाय के तौर पर निम्न करने का प्रयास करें। 

1) अपने क्षेत्र की लोकल गौशाला में एवं पथमेड़ा, सूरश्याम, जड़खोर आदि जैसी परम पवित्र बड़ी गौशालाओं में ऑनलाइन तुरन्त सामर्थ्यनुसार अच्छा दान करें। आगे मासिक गौ सेवा का संकल्प उठायें। गौ सेवा से जुड़ने से अनर्थ न होगा। दो बातें देखी हैं या तो व्यक्ति को साहस, स्वास्थ्य, भयनाश लाभ होता है, या बहुत ही वृद्ध सज्जन की शान्तिप्रद गति होती है।

https://godhampathmeda.org/

https://www.surshyam.co/

https://jadkhor.org/



2) किसी अन्य व्यक्ति की चिकित्सा के लिए संस्थाओं जैसे उदय फाउंडेशन आदि के द्वारा या अपने शहर में ऑक्सिजन का, चिकित्सा व्यय का दान करें। 

https://www.udayfoundation.org/

3) पेड़, बगीचे न काटने का प्रयास करें व काटने पर दस गुने पेड़ लगाने व पोषण का संकल्प करें। वृक्षारोपण संस्थाओं से जुड़े तथा खूब वृक्षारोपण करें। घर की छत पर 10-20 पौधे अवश्य  लगाएं। सरकार को भी इस पर कानून लाना चाहियें कि हर व्यक्ति को अपने हिस्से की ऑक्सिजन अवश्य पैदा करनी चाहियें। शायद इसी बेहोशी से जगाने ये कोरोना आया है।

4) इस दुर्लभ काल में अपने हॄदय परिवर्तन पर ध्यान दें। गौ माता, पशु पक्षी, पेड़ पौधों, पर्यावरण, साधु समाज, अपने पड़ोसी, अपने विरोधी, दरिद्र व जरूरतमंदो की भी सहायता अवश्य करें। 

5) अपने पद, धन, प्रतिष्ठा, नाम, यश का अहंकार त्याग कर श्री हरि के , अपने इष्ट के चरण शरण हो लें। जैसी हरि की इच्छा हो उसको स्वीकार करें। 

शायद इसके अलावा कोई मार्ग नही है। सभी संतो से भी प्रार्थना आवाहन करें। क्योंकि भगवान राम ने कहा है कि ,"मोतें संत अधिक करि लेखा।।" संतो को मुझसे भी बढ़कर मानना, अतः दिव्य भगवदप्राप्त संतो से भी प्रार्थना करें।

 कलयुग में श्री भगवान की आज्ञा से कार्यरत पवनपुत्र हनुमान जी महाराज से भी प्रार्थना करें।  ध्यान दें श्री हनुमान जी पवन पुत्र हैं, उन्हें अपना ऑक्सीजन मान हॄदय, छाती में भर लें। जय श्री राम का उदघोष करें। 



हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविंद ! आप ही हमारे वैद्य, दवा, हॉस्पिटल, बेड, ऑक्सिजन सब कुछ आप ही हो ! ऐसा भाव रखें। वासुदेवं सर्वमिति ! जीत देखूँ तित नारायण ! सबकुछ वासुदेव ही हैं, जहाँ देखूँ वहीं नारायण हैं। ऐसा भाव द्वारा निर्भय हो जाएं। भक्त प्रह्लाद जी को याद रखें कि किस प्रकार उन्होंने सभी जगह भगवान नारायण के दर्शन किये और कोई भी विपत्ति उनका अहित न कर सकी। कुछ ऐसा ही भाव हॄदय में हमें भी विकसित करना है।

हे प्रभु हम सर्वतोभावेन आपकी शरण में हों। 🙏


मांत्रिक चिकित्सा की दृष्टि से उपाय

जैसा कि ऊपर बताया गया है आप श्री विष्णु सहस्रनाम या अच्युत अनंत गोविंद नामस्मरण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त राम रक्षा स्तोत्र, श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा शप्तशती का देवी महात्मय - ग्यारहवा अध्याय या 12वें अध्याय के 39 वाँ श्लोक महामारी नाश से संबंधित है, अधिकाधिक पाठ करें।