राम नाम जप महिमा
जब आपके सामने कई मंत्र और नाम जप के लिए उपलब्ध हैं। तो फिर मन दुविधा में पड़ जाता है कि क्या जपें क्या न जपें।
हालांकि गुरु मंत्र इष्ट मन्त्र सर्वोपरि होता है। अपने अपने स्वभाव और प्रारब्ध के अनुसार भी जप में रुझान होता है। फिर भी संन्तो ने शास्त्रों में सबसे ज्यादा महिमा राम नाम की गायी गई है। शायद इसके पीछे कुछ मुख्य तार्किक, मनोवैज्ञानिक, कलयुग में लोगो की शारीरिक व मानसिक क्षमता कारण हैं, जिनके बारे में विवेचन करने का प्रयास किया गया है।
राम नाम जपने में सबसे सूक्ष्म नाम है अर्थात एक छोटी यूनिट है। यह पावन नाम और बीज मंत्र ( रां ) दोनों का कार्य करता हैं।
राम नाम सगुणोपासक और निर्गुणोपासक दोनों ही जप सकते हैं
राम राम जपने में स्वासों का सबसे कम प्रयत्न लगता है। छोटी छोटी स्वांसों में भी राम नाम जपा जा सकता है। अन्य लम्बे मन्त्रों को जपने में स्वासों को भी नियंत्रण में करना पड़ता है। एक रोगी व्यक्ति भी कराहते हुए भी राम राम जप सकता है।
सामान्यतः मन्त्रों को ॐ लगाये बिना नहीं जपा जाता। लेक़िन ॐ के जप को लेकर सामान्य गृहस्थ के मन में संशय बने रहता है कि ॐ का जप संसार से वैराग्य उत्पन्न करता है। इसीलिए सन्यास धारण करने के उपरान्त मुख्यतः ॐ का जप करा जाता है। इसलिए राम नाम सर्वसुलभ है।
मंत्रो के जप को लेकर कुछ न कुछ नियम अवश्य ही होते हैं। राम नाम कभी भी किसी भी अवस्था में जपा जा सकता है।
रामचरित मानस में नारद जी ने भगवान से राम नाम का महत्व सर्वाधिक हो ऐसा वरदान मांगा था। श्री तुलसीदास जी ने मानस में तो राम नाम की अप्रीतम ही महिमा गायी है।
परम सिद्ध संत श्री नीम करोरी बाबा भी कहते थे। ज्यादा सिरदर्द न ले राम का नाम लेते रह जैसे हनुमान जी ने लिया था। राम नाम लेने से सब कार्य पूरे हो जाते हैं। नीम करोरी बाबा भी त्रिकालदर्शी संत हैं जो जानते थे कि कलयुग में मन, नियत व दिल बहुत कच्चे हैं एवं आमदनी,अन्न,जल,वायु शुद्ध नहीं है, बड़ी बड़ी साधनायें, हठयोग और पवित्रता मनुष्य के बस की बात नहीं। ऐसे में बड़ी बड़ी बातें करने के बजाय मनुष्य अपने कर्मो को ठीक करते हुए बस राम नाम जपे वही काफी है।
देवरहा बाबा ने भी राम नाम जपने को कहा जैसे दो लकड़ी को आपस में घिसने से अग्नि पैदा होती है। वैसे ही राम नाम और हॄदय के घर्षण से दिव्य ज्योति पैदा होगी।
मीरा बाई के भगवान कृष्ण ही इष्ट थे, परन्तु उन्होंने पद में गाया है कि गुरु ने उन्हें राम नाम ही दिया।
कबीर साहेब ने भी राम नाम ही जपा। कबीर पंथ और सिक्ख पंथ में राम नाम जप की अत्यंत महिमा है।
राम नाम जपते हुए प्रभु श्री राम या ज्योति स्वरूप परमात्मा का भावपूर्ण चिन्तन कर सकते हैं।
जो भक्त श्री राम कृष्ण हरि स्वरूप के प्रति श्रद्धा रखते हैं। उनके लिये नाम जपना हो तो राम नाम, यदि मंत्र जपना हो तो ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।’ और यदि स्तोत्र पढ़ना हो ‘श्री विष्णु सहस्रनाम।’, और कीर्तन करना हो तो ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ या महामंत्र ‘ हरे राम हरे राम राम राम....’ का कर सकते हैं।
अगर किसी को कहीं आश्रय न मिल रहा हो तो अंत में राम नाम का आश्रय अवश्य लें। कभी कभी कोई व्यक्ति इतने तनाव या अवसाद में होता है कि उससे कोई स्तुति, पूजा पाठ, प्रार्थना, मन्त्र जप, नियम आदि नहीं बन पाते तो वो भी केवल राम नाम की शरण ले सकता है।
बाकि सबका अपना अपना भाव और श्रद्धा है। क्योंकि अंततः सब नाम उस एक परम शक्ति के ही हैं। दीर्घ काल तक जपते जपते इस बात का एहसास होने लगता है।
समर्थ गुरु रामदास, पापा रामदास,संत श्री राम, श्री राम शरणं संस्थान के संत स्वामी सत्यानंद जी, स्वामी प्रेम और स्वामी विश्वामित्र जी ने भी राम नाम का आश्रय लिया।